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ToggleParis Paralympics 2024: 17 साल की शीतल देवी, हात नहीं है फिर भी पैरालिम्पिक्स में इतिहास रच दिया, जानते है कैसे रचा इतिहास ?
सुनते हैं कि जब इरादा मजबूत हो, तो कोई भी चुनौती आपको आपके सपनों से दूर नहीं कर सकती। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले की 17 वर्षीय शीतल देवी ने इसी बात को अपने जीवन में पूरी तरह से सत्य साबित कर दिखाया है। शीतल का जन्म फोको मेलिया सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ जन्मजात डीसीस के साथ हुआ था, जिसने उनके हाथों को सामान्य रूप से विकसित होने से रोक दिया। लेकिन उन्होंने इस कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया और पैरों से तीर चलाकर तीरंदाजी की दुनिया में एक नया अपना नाम निर्माण कर दिया।
शीतल देवी की कहानी
शीतल का जीवन 2019 में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आया जब भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट की नजर उन पर पड़ी। सेना ने न केवल उनकी शिक्षा का जिम्मा उठाया, बल्कि उन्हें चिकित्सा सहायता भी प्रदान की। इस सहायता के साथ, शीतल ने तीरंदाजी में पूरी तरह से खुद को सौंप दिया। उनका खुद को सौंपना रंग लाया और उन्होंने 2022 के एशियन पैरा गेम्स में एक ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की। उन्होंने एक ही संस्करण में दो स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गर्वित किया। महिला व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी और मिश्रित टीम इवेंट में उन्होंने स्वर्ण पदक जीते, जबकि महिला युगल स्पर्धा में रजत पदक भी हासिल किया।
Paris Paralympics 2024 में शीतल ने बना दिया वर्ल्ड रिकॉर्ड
हाल ही में, शीतल ने पेरिस पैरालंपिक 2024 के लिए एक और शानदार उपलब्धि दर्ज की। महिलाओं की व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी के क्वालिफिकेशन राउंड में उन्होंने 720 में से 703 अंक प्राप्त कर नया विश्व रिकॉर्ड निर्माण किया। हालांकि, यह रिकॉर्ड तुर्की की तेर अंदाज कुरकल गिर्दी द्वारा 704 अंक से तोड़ा गया, लेकिन शीतल का प्रदर्शन ने सभी को चकित कर दिया और उन्हें सीधे राउंड ऑफ 16 के लिए क्वालीफाई कर दिया।
Paris Paralympics 2024 शीतल देवी की यात्रा
शीतल की यात्रा को सराहा गया है, और 2023 में उन्हें एशियन पैरालंपिक कमेटी द्वारा “बेस्ट यूथ एथलीट ऑफ द ईयर” से सम्मानीत किया गया। उसी वर्ष, उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े खेल पुरस्कार अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया। शीतल देवी की यात्रा उनके समर्पण, मेहनत और कभी हार न मानने की जिद का एक अनोखा उदाहरण है। उनके संघर्ष ने केवल उनके परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे देश को अभिमानी किया है। उनके माता-पिता मानते हैं कि शीतल ने साबित कर दिया है कि प्रॉब्लम्स चाहे जैसी भी हों, उन्हें मजबूत हौसले से हराया जा सकता है।
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भारतीय सेना ने पहचानी शीतल देवी की कुशलता
2021 में जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में भारतीय सेना द्वारा आयोजित एक युवा कार्यक्रम में सेवा के कोचो को शीतल की सहज एथलीट क्षमता और आत्मविश्वास का पता चला, हालांकि शीतल देवी की कोचों को शुरुआत कोशिशें में काफी परेशानी आई. कोचों ने शुरू में प्रोस्थेटिक हाथों के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। लेकिन यह काम नहीं आया हालांकि कुछ दिनों की खोज के बाद शीतल देवी के कोचों को बिना हाथ वाले तीरंदाज मैथ्स स्टूडेंट्स मां के बारे में पता चला। जिन्होंने लंदन 2012 पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल किया था. उसके बाद कोचों ने शीतल देवी को भी पैरो के इस्तमाल से उनको शिखाया।
शीतल देवी: हौसले की ऊंचाई और सपनों की ऊड़ान (Paris Paralympics 2024)
शीतल की कहानी यह बताती है कि असली जीत शारीरिक सीमाओं से नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति और अडिग हौसले से प्राप्त की जा सकती है। शीतल और अन्य पैरालंपिक खिलाड़ियों की मेहनत और जज़्बा हमारे लिए प्रेरणा की सिख है। हम शीतल के फाइनल में शानदार प्रदर्शन की आशा करते हैं और उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएँ भेजते हैं।
हमारे साथ बने रहिए और शीतल की यात्रा पर नजर रखिए, क्योंकि उनकी सफलता केवल उनकी ही नहीं, बल्कि पूरे देश का सम्मान है। BEST99NEWS के साथ जुड़े रहें और जानें शीतल जैसी प्रेरणादायक कहानियों के बारे में।
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